आइए जाने नाव का इतिहास

 आइए जाने नाव का इतिहास 

History of boat

 आपने बचपन में कागज कि नाव तो बनाई ही होगी , नाव जिसे हम अंग्रेजी में Boat कहते है पतवार या पाल से चलने वाला एक छोटा जलयान है।

   आजकल कि नावे इंजन से चलती है और बहुत बड़ी  भी बनती है  आजकल नावों के आदिम स्वरूपों को देख कर उनके उदभव और विकास की रूप - रेखा का केवल काल्पनिक अनुमान लगाया जा सकता है। कुछ समय पहले आदिवासियों ने इधर उधर जाने और अपना सामान ढोने के लिए जब नदी , नाले पार करने के आरंभिक प्रयास किए होंगे ।

तब  उन्होंने लकड़ी या हल्के पदार्थो को बांधकर या किसी पेड़ की लकड़ियां काटकर इसे पानी में तैराने का प्रयास किया होगा इस उद्देश्य में उन्हें सफलता मिली होगी और कुछ इस प्रकार नावों की शुरुआत हुई होगी हम नाव या जहाज का मूल इसे ही मान सकते है। छाल की डोरिया और वह बाद में बनी होंगी और उसके बाद पशुओं के चमड़े के मशको में हवा भर कर उसके ऊपर घास फूस लकड़ी आदि का पाटन लगाकर इनसे लोग पानी के इस पार से उस पार उतरने लगे। ये कुछ सुधरे हुए स्वरूप थे  कुछ भी हो लेकिन यह आचार्यजनक तथ्य है कि बहुत दूर-दूर देशों में स्थित आपस में कभी भी एक दूसरे से संपर्क में न आ सकने वाले लोगो के मन में अलग-अलग एक जैसे विचार उत्पन्न हुए होंगे। तभी तो बिना किसी संपर्क के लोगो ने नाव से यात्रा करना शुरू किया होगा ।

 आरंभ में ये बेड़े या डोंगिया अपनी गति के लिए पानी के प्रवाह पर ही निर्भर होंगी परन्तु जब किसी ने यह खोज की होगी कि किसी लट्ठे या चप्पू की सहायता से वह इन्हे इच्छानुसार इधर उधर नदी की धारा के कारण आरपार या प्रवाह के साथ अथवा उल्टे भी ले जा सकता है तब उसे अपनी सफलता पर अवश्य ही बड़ा गर्व हुआ होगा फिर तो नदिया ,झीलों में विहार करते लोगो ने कभी कभी अच्छे मौसम में तट से दूर समुद्र में भी जाना आरंभ कर दिया होगा और धीरे धीरे समय के साथ नाव में बदलाव होते गए होंगे और हमारे समय में इस प्रकार के नाव को जहाज में तब्दील कर दिया गया होगा ।

 यह एक बहुत ही अद्भुत रहा होगा नाव का इतिहास।



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