कैसे बनते हैं 'ओले ' आईए जाने ?
कई बार बारिश के साथ-साथ ओले भी गिरते हैं।ये ओले कैसे बनते हैं क्या आपने कभी सोचा है ? ओले पृथ्वी की सतह से प्रायः दो से सात मील की ऊंचाई पर बनते हैं। बर्फ के ये छोटे-छोटे टुकड़े अंतरिक्ष के उस हिस्से से आते हैं जहां के बारे में हम और आप सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं। इतना ही नहीं, इनके निर्माण के गर्म मौसम की आवश्यकता होती है।
पृथ्वी की सतह से उठने वाली हवा गरम होकर फैलती है और इस फैलने के दौरान हवा तीव्रता से ठंडी होती है। ठंडा होते-होते इसका तापमान बहुत कम हो जाता है और यह हवा इतनी तेजी से ऊपर उठती है कि इसके साथ वर्षा की बूंदें भी उस क्षेत्र में चली जाती हैं, जहां हवा बहुत ठंडी होती है।वहां यह इस तापक्रम पर पर्वत शिखरों पर पाई जाने वाली बर्फ के सम्पर्क में आती है और मटमैली बर्फ की गोलियां बनाती हैं।
रोचक बात यह है कि जब बर्फ धीमी गति से जमती है तो दूधिया परत बनती है क्योंकि हवा के बुलबुलों को बचने का समय नहीं मिलता। ओलों के मटमैला होने का मतलब है।कि यह बहुत तीव्रता से जमा था जबकि साफ होने का मतलब है कि यह धीरे-धीरे तैयार हुआ था। इस तरह ओले के उत्पन्न होने की कहानी इसकी संरचना में छिपी होती है। सबसे बड़े ओले का आकार छोटे चकोतरे या सॉफ्ट बॉल जितना होता है जबकि सबसे छोटे ओले का आकार मटर या चने के दाने के बराबर होता है।
ओलों के लिए सर्वाधिक अनुकूल जगहें अमेरीका, रूस और अर्जेंटीना हैं। केन्या के ऊंचे पर्वतीय इलाकों में भी ओले गिरने की काफी घटनाएं होती हैं। भारत में बेमौसमी ओलों के गिरने से भारी फसली नुक्सान होता रहता है। ओले कई बार उन्हें बनाने वाले बादलों में कुछ समय के लिए नाचते-कूदते भी हैं।
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