ऐसा गांव जहां चोरों को दी जाती है ट्रेनिंग।

  ऐसा गांव जहां चोरों को दी जाती है ट्रेनिंग।

Thieve village

 झारखंड के जामताड़ा का नाम अभी तक साइबर क्राइम के रूप में कुख्यात रहा है। वहां के युवक ऑनलाइन ठगी के जरिए लोगों को चूना लगाते रहे हैं। लेकिन एक ऐसा गांव भी है जिसने झारखंड को पीछे छोड़ दिया है। यहां चोरी करना ही लोगों का पेशा है। यह गांव मध्यप्रदेश में है अकेले इस गांव के लोगों के ऊपर 1100 से अधिक मुकदमे दर्ज हैं। इस गांव का नाम "कड़ियासासी गुलपेड़ी" है जिसकी महिलाओं से लेकर बच्चे तक चोरी की घटनाओं को देश में घूम-घूम कर अंजाम देते हैं। कड़ियासासी गांव की आबादी 2500 के करीब है और ये जनजाति के लोग हैं। 

इस गांव के लोगों का पेशा ही चोरी, छीना-झपटी, लूट सहित अन्य अपराध करना है। यहां बच्चों से चोरी करवाई जाती है तो महिलाएं रेकी का काम करती हैं। ये लोग उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, दिल्ली, बंगाल समेत पूरे देश में फैल कर घटनाओं को अंजाम देते हैं। उन्होंने कहा कि महिलाएँ कपड़े आदि बेचने के बहाने क्षेत्र की रेकी करती है तो बच्चे और नवयुवक शादियों, बैंको, सेठों की बड़ी दुकानों, मॉल आदि में जाकर चोरी को अंजाम देते है।


बच्चो को दी जाती है चोरी की ट्रेनिंग

 यहां छोटी उम्र से ही बच्चो को इन अपराधो की ट्रेनिंग देने शुरू कर दी जाती है। इसके लिए उनके उनके मां बाप चोरी सीखने वाली सरगना को 2-3 लाख रुपए तक की फीस भी देते है। बच्चे की ट्रेनिंग 12 से 13 साल की उम्र में ही शुरू कर दी जाती है। अजीब बात यह है की मां बाप खुद चेक करते है कौन सा सरगना कितनी अच्छी ट्रेनिंग दे सकता है।

 ट्रेनिंग में बच्चे को जेब काटना, तेजी से फरार होना, भीड़ के बीच से रुपए से भरे बैग पार करना, पुलिस पकड़ ले तो कैसे बचना है और पिटाई कैसे सहन करनी है। यह सब सिखाया जाता है। इसके बाद उसे एक साल के लिए गैंग में काम पर रखा जाता है जिसकी एवज में सरगना उसके मां बाप को 3 से 5 लाख रुपए का भुगतान करता है। गांव के गैंग बड़े शातिर तरीके से वारदात को अंजाम देते है। बहुत कम होता है जब सरगना पकड़े जाते है। उस स्थिति में इनके पास वकीलों की बड़ी टीम है।


 

   

  

  

  

 

  


 

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