आइए जाने टेलीफोबिया क्या है ?
स्मार्टफोन और व्हाट्सएप के दौर में कई लोग फोन पर बात करने की बजाय मैसेज को तरजीह देने लगे हैं। टैक्स्ट मैसेज का फायदा यह है कि मल्टीटास्किंग करते हुए भी आप अपनी बात सामने वालेे व्यक्ति के सामने रख सकते हैं लेकिन मैसेजेस पर बढ़ती निर्भरता लोगों में एक अजीब किस्म के फोबिया (डर) को भी जन्म दे रही है। दुनिया में कई लोग ऐसे हैं जिन्हें फोन पर बात करने के नाम से या फोन की घंटी बजने पर ही बेचैनी होने लगती हैं। टैलीफोबिया या फिर फोन पर बात के नाम से ही बेचैनी होने लगना कोई नया मर्ज नहीं है बल्कि यह सालों से देशों, समुदायों और पीढ़ियों दर पीढ़ियों चला आ रहा है। हालांकि स्मार्टफोन के आगमन के साथ ही यह समस्या लोगों में आम होने लगी है। जिन लोगों को यह फोबिया होता है, उन्हें हालांकि अजनबियों से बातें करने में भी कोई परेशानी नहीं होती और ये लोग दिन में सैंकड़ों मैसेजेस भेज सकते हैं लेकिन जब बात फोन पर बात करने की होती है तो इन लोगों को थोड़ी बेचैनी जरूर होती है और अक्सर ये फोन पर बात करने से बचने की कोशिश करते हैं।
अक्सर ऐसे बहुत से लोग whatsapp, messenger जैसी सुविधाओं का सहारा लेकर अपने इस फोबिया से भागने की कोशिश करते हैं इसलिए इस फोबिया के बारे में पता लगाना आसान नहीं है लेकिन लोगों की गतिविधियों का पता लगाकर और उनके बिहेवियर पैटर्न का अंदाजा लगाकर ऐसा किया जा सकता है। हालांकि रिसर्च में यह साबित हुआ है कि स्मार्टफोन से पहले भी कई लोग इस तरह की परेशानी से जूझते थे लेकिन स्मार्टफोन के पहले तक ये कभी फोबिया में तबदील नहीं हुआ था। 1929 में ब्रिटिश कवि और लेखक राबर्ट ग्रेव्स ने लिखा था कि प्रथम विश्व युद्ध में घायल होने के बाद उन्हें टेलीफोन पर बात करने में बेहद बेचैनी महसूस होती है बल्कि इसकी वजह लोगो के अनुभवों से जुड़ी हुई है।
0 Comments
If you have any doubt then you can comment us